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संसद के पास ऐसा कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं है जो लोगों से अदालत जाने का अधिकार छीन सके। यह अधिनियम संविधान की मूल संरचना और अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 25… का उल्लंघन है। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार यह कानून लेकर आई थी, जिसे संसद से पास भी कराया गया।
पूजा स्थल अधिनियम की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि हमने पूजा स्थल अधिनियम 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। हमारा कहना है कि जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने पूजा स्थल अधिनियम की जो व्याख्या दी है। आप राम मंदिर के अलावा किसी अन्य मामले के लिए अदालत नहीं जा सकते, यह असंवैधानिक है। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पूजा स्थल अधिनियम में कट-ऑफ तारीख 15 अगस्त 1947 है। कट-ऑफ तारीख 712 ई. होनी चाहिए जब मोहम्मद बिन कासिम ने यहां पहला हमला किया और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। यह कट-ऑफ तारीख असंवैधानिक है।
संसद के पास ऐसा कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं है जो लोगों से अदालत जाने का अधिकार छीन सके। यह अधिनियम संविधान की मूल संरचना और अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 25… का उल्लंघन है। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार यह कानून लेकर आई थी, जिसे संसद से पास भी कराया गया। यह कानून 15 अगस्त, 1947 यानी देश की आजादी से पहले अस्तित्व में किसी भी धार्मिक पूजा स्थल की यथास्थिति बरकारर रखने की शक्ति देता है, साथ ही पूजा स्थलों को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने से रोकता है। अगर ऐसा कोई करता है तो उसे एक से तीन साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। इस एक्ट में कुद महत्वपूर्ण धाराओं को शामिल किया गया है।
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